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2 थिस्सलुनीकियों
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1 राजा 6
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1 राजा 6:0 (04 17 am)
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1 राजा 6
1
इस्राएलियों
के
मिस्र
देश
से
निकलने
के
चार
सौ
अस्सीवें
वर्ष
के
बाद
जो
सुलैमान
के
इस्राएल
पर
राज्य
करने
का
चौथा
वर्ष
था,
उसके
जीव
नाम
दूसरे
महीने
में
वह
यहोवा
का
भवन
बनाने
लगा।
2
और
जो
भवन
राजा
सुलैमान
ने
यहोवा
के
लिये
बनाया
उसकी
लम्बाई
साठ
हाथ,
चौड़ाई
बीस
हाथ
और
ऊंचाई
तीस
हाथ
की
थी।
3
और
भवन
के
मन्दिर
के
साम्हने
के
ओसारे
की
लम्बाई
बीस
हाथ
की
थी,
अर्थात
भवन
की
चौड़ाई
के
बराबर
थी,
और
ओसारे
की
चौड़ाई
जो
भवन
के
साम्हने
थी,
वह
दस
हाथ
की
थी।
4
फिर
उसने
भवन
में
स्थिर
झिलमिलीदार
खिड़कियां
बनाईं।
5
और
उसने
भवन
के
आसपास
की
भीतों
से
सटे
हुए
अर्थात
मन्दिर
और
दर्शन-स्थान
दोनों
भीतों
के
आसपास
उसने
मंजिलें
और
कोठरियां
बनाईं।
6
सब
से
नीचे
वाली
मंजिल
की
चौड़ाई
पांच
हाथ,
और
बीच
वाली
की
छ:
हाथ,
और
ऊपर
वाली
की
सात
हाथ
की
थी,
क्योंकि
उसने
भवन
के
आसपास
भीत
को
बाहर
की
ओर
कुसींदार
बनाया
था
इसलिये
कि
कडिय़ां
भवन
की
भीतों
को
पकड़े
हुए
न
हों।
7
और
बनते
समय
भवन
ऐसे
पत्थरों
का
बनाया
गया,
जो
वहां
ले
आने
से
पहिले
गढ़कर
ठीक
किए
गए
थे,
और
भवन
के
बनते
समय
हथौड़े
वसूली
वा
और
किसी
प्रकार
के
लोहे
के
औजार
का
शब्द
कभी
सुनाईं
नहीं
पड़ा।
8
बाहर
की
बीचवाली
कोठरियों
का
द्वार
भवन
की
दाहिनी
अलंग
में
था,
और
लोग
चक्करदार
सीढिय़ों
पर
हो
कर
बीचवाली
कोठरियों
में
जाते,
और
उन
से
ऊपर
वाली
कोठरियों
पर
जाया
करते
थे।
9
उसने
भवन
को
बनाकर
पूरा
किया,
और
उसकी
छत
देवदारु
की
कडिय़ों
और
तख्तों
से
बनी
थी।
10
और
पूरे
भवन
से
लगी
हुई
जो
मंज़िलें
उसने
बनाईं
वह
पांच
हाथ
ऊंची
थीं,
और
वे
देवदारु
की
कड़ियों
द्वारा
भवन
से
मिलाई
गई
थीं।
11
तब
यहोवा
का
यह
वचन
सुलैमान
के
पास
पहुंचा,
कि
यह
भवन
जो
तू
बना
रहा
है,
12
यदि
तू
मेरी
विधियों
पर
चलेगा,
और
मेरे
नियमों
को
मानेगा,
और
मेरी
सब
आज्ञाओं
पर
चलता
हुआ
उनका
पालन
करता
रहेगा,
तो
जो
वचन
मैं
ने
तेरे
विषय
में
तेरे
पिता
दाऊद
को
दिया
था
उसको
मैं
पूरा
करूंगा।
13
और
मैं
इस्राएलियों
के
मध्य
में
निवास
करूंगा,
और
अपनी
इस्राएली
प्रजा
को
न
तजूंगा।
14
सो
सुलैमान
ने
भवन
को
बनाकर
पूरा
किया।
15
और
उसने
भवन
की
भीतों
पर
भीतरवार
देवदारु
की
तख्ताबंदी
की;
और
भवन
के
फ़र्श
से
छत
तक
भीतों
में
भीतरवार
लकड़ी
की
तख्ताबंदी
की,
और
भवन
के
फ़र्श
को
उसने
सनोवर
के
तख्तों
से
बनाया।
16
और
भवन
की
पिछली
अलंग
में
भी
उसने
बीस
हाथ
की
दूरी
पर
फ़र्श
से
ले
भीतों
के
ऊपर
तक
देवदारु
की
तख्ताबंदी
की;
इस
प्रकार
उसने
परमपवित्र
स्थान
के
लिये
भवन
की
एक
भीतरी
कोठरी
बनाईं।
17
उसके
साम्हने
का
भवन
अर्थात
मन्दिर
की
लम्बाई
चालीस
हाथ
की
थी।
18
और
भवन
की
भीतों
पर
भीतरवार
देवदारु
की
लकड़ी
की
तख्ताबंदी
थी,
और
उस
में
इत्द्रायन
और
खिले
हुए
फूल
खुदे
थे,
सब
देवदारु
ही
था:
पत्भर
कुछ
नहीं
दिखाई
पड़ता
था।
19
भवन
के
भीतर
उस
ने
एक
दर्शन
स्थान
यहोवा
की
वाचा
का
सन्दूक
रखने
के
लिये
तैयार
किया।
20
और
उस
दर्शन-स्थान
की
लम्बाई
चौड़ाई
और
ऊंचाई
बीस
बीस
हाथ
की
थी;
और
उसने
उस
पर
चोखा
सोना
मढ़वाया
और
वेदी
की
तख्ताबंदी
देवदारु
से
की।
21
फिर
सुलैमान
ने
भवन
को
भीतर
भीतर
चोखे
सोने
से
मढ़वाया,
और
दर्शन-स्थान
के
साम्हने
सोने
की
सांकलें
लगाई;
और
उसको
भी
सोने
से
मढ़वाया।
22
और
उसने
पूरे
भवन
को
सोने
से
मढ़वाकर
उसका
पूरा
काम
निपटा
दिया।
और
दर्शन-स्थान
की
पूरी
वेदी
को
भी
उसने
सोने
से
मढ़वाया।
23
दर्शन-स्थान
में
उसने
दस
दस
हाथ
ऊंचे
जलपाई
की
लकड़ी
के
दो
करूब
बना
रखे।
24
एक
करूब
का
एक
पंख
पांच
हाथ
का
था,
और
उसका
दूसरा
पंख
भी
पांच
हाथ
का
था,
एक
पंख
के
सिरे
से,
दूसरे
पंख
के
सिरे
तक
दस
हाथ
थे।
25
और
दूसरा
करूब
भी
दस
हाथ
का
था;
दोनों
करूब
एक
ही
नाप
और
एक
ही
आकार
के
थे।
26
एक
करूब
की
ऊंचाई
दस
हाथ
की,
और
दूसरे
की
भी
इतनी
ही
थी।
27
और
उसने
करूबों
को
भीतर
वाले
स्थान
में
धरवा
दिया;
और
करूबोंके
पंख
ऐसे
फैले
थे,
कि
एक
करूब
का
एक
पंख,
एक
भीत
से,
और
दूसरे
का
दूसरा
पंख,
दूसरी
भीत
से
लगा
हुआ
था,
फिर
उनके
दूसरे
दो
पंख
भवन
के
मध्य
में
एक
दूसरे
से
लगे
हुए
थे।
28
और
करूबों
को
उसने
सोने
से
मढ़वाया।
29
और
उसने
भवन
की
भीतों
में
बाहर
और
भीतर
चारों
ओर
करूब,
खजूर
और
खिले
हुए
फूल
खुदवाए।
30
और
भवन
के
भीतर
और
बाहर
वाले
फर्श
उसने
सोने
से
मढ़वाए।
31
और
दर्शन-स्थान
के
द्वार
पर
उसने
जलपाई
की
लकड़ी
के
किवाड़
लगाए
और
चौखट
के
सिरहाने
और
बाजुओं
की
लंबाई
भवन
की
चौड़ाई
का
पांचवां
भाग
थी।
32
दोनों
किवाड़
जलपाई
की
लकड़ी
के
थे,
और
उसने
उन
में
करूब,
खजूर
के
वृक्ष
और
खिले
हुए
फूल
खुदवाए
और
सोने
से
मढ़ा
और
करूबों
और
खजूरों
के
ऊपर
सोना
मढ़वा
दिया
गया।
33
इसी
की
रीति
उसने
मन्दिर
के
द्वार
के
लिये
भी
जलपाई
की
लकड़ी
के
चौखट
के
बाजू
बनाए
और
वह
भवन
की
चौड़ाई
की
चौथाई
थी।
34
दोनों
किवाड़
सनोवर
की
लकड़ी
के
थे,
जिन
में
से
एक
किवाड़
के
दो
पल्ले
थे;
और
दूसरे
किवाड़
के
दो
पल्ले
थे
जो
पलटकर
दुहर
जाते
थे।
35
और
उन
पर
भी
उसने
करूब
और
खजूर
के
वृक्ष
और
खिले
हुए
फूल
खुदवाए
और
खुदे
हुए
काम
पर
उसने
सोना
मढ़वाया।
36
और
उसने
भीतर
वाले
आंगन
के
घेरे
को
गढ़े
हुए
पत्थरों
के
तीन
रद्दे,
और
एक
परत
देवदारू
की
कडिय़ां
लगा
कर
बनाया।
37
चौथे
वर्ष
के
जीव
नाम
महीने
में
यहोवा
के
भवन
की
नेव
डाली
गई।
38
और
ग्यारहवें
वर्ष
के
बूल
नाम
आठवें
महीने
में,
वह
भवन
उस
सब
समेत
जो
उस
में
उचित
समझा
गया
बन
चुका:
इस
रीति
सुलैमान
को
उसके
बनाने
में
सात
वर्ष
लगे।
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